Sunday, April 13, 2014

माननीय राष्टीय अध्यक्ष *श्री कैलाश नारायण सारंग जी*की कलम से द्वारा -प्रदेश कर्यालय अखिल भारतीय कायस्थ महासभा भोपाल मध्य प्रदेश ::

!! जात-पात पूछिए नहीं, पूछ लीजिये ज्ञान  और मोल करो  तलवार का, पड़ीं रहन दो म्यान !!


मौसम अचानक बदल गया हैं !तीखी गर्म हवाओं और वर्फवारी ने तीखी तेज तपिश का रूप ले लिया हैं ! यह प्रकृति की करवट हैं ! लोगों में बदलते मौसम के अनुरूप स्वयं को तैयार करने की वेचैनी हैं ! मौसम के परिवर्तन की यह भौतिक वेचैनी को राजनैतिक स्तर पर भी महसूस कर रहा हूँ ! राजनैतिक स्तर पर यह मानसिक वेचैनी हैं ! लोग तय नहीं कर पा रहे कि वे द्वन्द के इस वातावरण में किसकों प्राथमिकता दें,राजनीति को या राष्टनीति को !

२- मानसिक स्तर पर राजनीति का यह द्वन्द मौजूदा लोकसभा चुनाओं को लेकर आरम्भ हुआ ! सामान्यतः कायस्थ समाज सीधे राजनीति नहीं करता , लेकिन राष्टहित की समस्याओं का ऐसा कोई बिन्दु नहीं, ऐसा कोई कालखण्ड नहीं जब कायस्थ समाज ने राष्ट-जीवन में आएं संकटों का सामना करने, अपना योगदान, अपनी आहुतियां न दी हों ! हम एक बौद्धिक कौम हैं ! एक ऐसा समाज जिसने इस राष्ट्र की संस्कृति कों, संस्कारों को, इसकी गरिमा को या इसके वैभव को संजोकर सुरक्षित रखने का काम सदैव किया, इसलिए जब बात राष्ट् की हो, राष्ट के हित की बात हों कायस्थ समाज हमेशा राष्ट के साथ रहा हैं ! कायस्थ समाज के लोग लगभग सभी राजनैतिक दलों में हैं ! जो जहां जिस दल में हैं वह वहां पूरी ईमानदारी और समर्पण से काम करता हैं ! वह भी राष्ट्-हितो को सबसे वह भी राष्ट्-हितो को सबसे ऊपर रखकर !

3-बहुत वर्षो बाद देश में पहलीबार ऐसा चुनावी वातावरण हैं, जिसमें किसी लोक-लुभावन वादों या मन-भावन नारों के आधार पर वोट नहीं मांगे जा रहें बल्कि राष्ट की भीतरी और बाहरी समस्याओं को सामने रखकर वोटो का आग्रह कर रहा हैं और वाकई पिछले कुछ वर्षो में पूरी दुनिया आगे गई हैं, भारत पीछे रह गया हैं ! ऐसा दोनों मोर्चो पर हुआ हैं ! देश के भीतर और बाहर भी ! वित्तीय स्थिति कमजोर हुई ! डॉलर की तुलना में रूपयें की कीमत कम हुई ! आयात बढ़ा, निर्यात कम हुआ,नौजवानों को रोजगार के अवसर कम हुए ! नौकरियां घटी हैं और मंहगाई बढ़ी, विदेशी घुष्-पैठ बढ़ी ! आतंकबाद बढ़ा, भ्रष्टाचार बढ़ा, घोटाले बढ़े,दुनिया में दोस्त कम हुयें और साख घटी ! सीमा पर शत्रुओं की सरगर्मी बढ़ी और राष्ट जीवन में शर्मनाक अपराधों और वारदातों की संख्या बढ़ी हैं ! अब प्रश्न उठता हैं कि इन तमाम समस्याओं से निजात दिलाने की क्षमता किस नेृतत्व में हैं और देश की जनता की अपेक्षाओं पर कौन खरा उत्तर सकता हैं और किसके प्रति विश्र्वाश् व्यक्त किया जाना चाहियें !

४-आजादी के बाद के इन लगभग ६७ सालों की समीक्षा करें तो हम पायेगें की बीते दस बर्षो में देश के सम्मान,साख, समृद्धि और सुरक्षा में जितनी गिरावट आई उतनी इससे पहिले कभी नहीं ! तो क्या इसके पीछे कारण यह हैं कि देश का प्रधानमंत्री एक ऐसा इंसान हैं जो व्यक्तिगतरूप से भले ही सज्जन हों, लेकिन वह प्रशासनिक निर्णयों और मानसिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं था ! मिडिया की तमाम रिपोर्टों में इस बात का हमेशा व्यंग किया जाता हैं कि प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह का रिमोट श्रीमती सोनियां गांधी के हाथ में हैं !
आरोप यह नहीं हैं कि कोई जानबूझकर देश को गर्त में धकेल रहा हैं बल्कि समस्या यह हैं कि स्थानीय व्यक्ति ही स्थानीय समस्याओं को समझता हैं ! विदेशी मूल के लोगों की मानसिकता या उनके सोचने की क्षमता अलग होती हैं !
यह ठीक इसी तरह का हैं जैसे प्रकृति प्रत्येक इलाके में प्रथक वनस्पति पैदा करती हैं ! एक वनस्पति दूसरे स्थान पर आकर्षक तो हो सकती हैं,लेकिन वह सौंदर्य नहीं बढ़ा सकती ! इस मानसिकता को मैनें इतिहास की पुस्तकों में पढ़ा हैं ! यह नीति -सूचक संस्मरण आचार्य चाणक्य से सम्बंधित हैं !

५-बात उस दौर की हैं जब चन्द्रगुप्त मगध के सम्राट बन गएं थे और सेल्युकस् नाइकटर को घेरकर पराजित कर चुकें थे ! सेल्युकस् सिकंदर का सेनापति था ! भारत से लौटते वक्त सिकंदर अपने जीते हुयें इलाकों को इस सेल्युकस् को सोप गया था ! बाद में अपने स्वामी का सपना पूरा करने के लियें इस सेनापति ने भारत पर पुनः आक्रमण किया ! आचार्य चाणक्य की रणनीति और चन्द्रगुप्त के शौर्य ने भारत को जीत दिलाई ! अंत में सेल्युकस् की बेटी हेलेना का विवाह चन्द्रगुप्त से हुआ और दहेज में काबुल और कांधार के इलाके मगध साम्राज्य का हिस्सा बने ! लेकिन विवाह पूर्व आचार्य चाणक्य ने दो शर्त रखी ! पहली यह कि हेलेना मगध साम्राज्य की पटरानी नहीं होगी और दूसरी उसकी कोख से जन्मा बालक उत्तराधिकारी नहीं होगा ! इन दोनों बातों को चन्द्रगुप्त ने भी माना और सेल्युकस् ने भी ! तब आचार्य चाणक्य ने अपने इस सिद्धांत अथवा अपने शिष्य सम्राट चन्द्रगुप्त को व्याख्या नहीं समझाई ! यदि समझाई होगी तो उसका विवरण इतिहास की किसी संदर्भ पुस्तक में नहीं हैं लेकिन देश में बीतें दस सालों के परिदृश्य को देखकर हम उस सिद्धांत का मर्म को समझ सकते हैं कि यदि सत्ता का केंद्र किसी विदेशी मूल के व्यक्ति के हाथ में हैं तो राष्ट् के सम्मान का परिदृश्य क्या होगा !

६-निसंदेह हम अतिथियों को देवता मानने वाली संस्कृति में जन्में हैं ! अपने प्राण संकट में डालकर भी हमने अतिथियों को संतुष्ट करने का प्रयत्न किया हैं ! उन्हें सिर आखों बिठाया हैं, लेकिन अतिथियों के घर में प्रवेश और स्थान की मर्यादा होती हैं, क्या अपनी कुल परम्पराएँ,पूर्वजों की प्रतिष्ठा अथवा संस्कारित मूल्यों की भी आहुतियां दी जाना चाहियें ? आज उसी की नोवत हैं ! हमने दस साल राजनैतिक नेतृत्त्व और केंद्रीय सत्ता का स्वरूप देखा हैं ! हमने देश में आर्थिक,सामाजिक,शैक्षणिक,सामरिक,नैतिक और मूल्यगत गिरावट देखी हैं, लेकिन अब राष्ट् के अस्तित्त्व और भविष्य पर प्रश्न-चिन्ह लग गया हैं अतएव हमें गंभीरता से विचार करना होगा !

७-किसी भी राजनैतिक दल से जुड़ाव या किसी को समर्थन देना यह किसी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता होती हैं, इसलिए सामाजिक स्तर पर या प्रबुद्धता की दृष्टि से हम चाहे जो अभियान चलाएं, लेकिन हमने कभी भी राजनीति में दलीय समर्थन या विरोध का वैसा प्रोपेगण्डा न किया जैसा कुछ लोग करते हैं ! इसका कारण यह हैं कि हमारे समाज के सामने भारत राष्ट् और उसकी सनातन संस्कृति ही महत्वपूर्ण और वही हमारी सामाजिक नीति भी रही हैं ! इस राष्ट की समृद्धि,अपनी सम्पन्नता,उसकी साख,उसकी प्रतिष्ठा या इस देश का परम वैभव ही हमारी प्राथमिकता हैं इसलिए आज हमारे सामने अपनी प्राथमिकता तय करने की बात आ गयी हैं ! अब हमें अपनी निजी प्राथमिकता और निजी स्वतंत्रता से पहले राष्ट् की प्राथमिकता पर विचार करना होगा ! आखिर कौन ऐसा चेहरा हैं और कोण ऐसा व्यक्तित्व हैं जो इस राष्ट् की दिशा और दशा को बदलने की क्षमता रखता हैं ! उसे पूरी ताकत के साथ दिल्ली चुनकर भेजना होगा !

८- इस चुनाव के प्रचार के शोर में में ऐसी प्रतिध्वनियों को पहचान रहा हूँ कि जो सामान्यजनों का ध्यान मुद्दों से हटाना चाहती हैं ! बेमतलब की बातों और बेमतलब की बहस कर देश की वास्तविकता समस्याओं से मानस को दूर करने का प्रयत्न कर रहें हैं ! ताकि लोग भ्रमित हो और राष्ट् की चिंता के साथ मैदान में आए व्यक्तियों को पीछे धकेला जा सकें ! में पूछना चाहता हूँ कि पूरे समाज से कि आज कौन से प्रश्न ज्वलंत हैं, कोनसी समस्याएं प्राणलेवा हैं, हमें किन बातों पर प्राथमिकता के साथ विचार-विमर्श करना चाहियें ! क्या देश में बढ़ रहे घोटालों, बढ़ रहें आयात, बढ़ रहें अपराध, बढ़ रही बेरोजगारी, युवाओं में बढ़ते अवसाद बढ़ती महंगाई के बाबजूद भी क्या हमें परम्परागत राजनैतिक दलों पर विचार करना चाहियें अथवा गुजरात को एक नई दिशा, एक नई ऊंचाई वाले नरेंद्र मोदी पर एक विश्र्वाश करना चाहियें !

९- हमारे सामने सभी दल हैं ! कांग्रेश, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, साम्यवादी पार्टी, जनता दल, आम आदमी पार्टी, सहित तमाम दल हैं और दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी हैं जो आरोपात्मक नही बल्कि समाधान कारक बात कर रहें हैं ! उनके बातों में दम हैं! चूकिं वे केवल खोखले वादे नहीं कर हैं अपितु उन्होंने गुजरात में ऐसा करके दिखाया हैं ! इसीलिए बाकी लोगों में दहशत हैं ! वे तमाम लोग अब तक राष्ट्र की नहीं कुर्सी की राजनीति करते हैं ! देश के ज्वलंत सवालों को टालना, लोगों को बांटना और अपनी सरकार बना लेना यही उनकी प्राथमिकता रही हैं ! इस चुनाव में भी उनकी कोशिश हैं समाज को बांटा जाए! यह बटबारा जाति के नाम पर हो सकता हैं, क्षेत्र के नाम पर, धर्म के नाम पर, सम्प्रदाय के नाम पर हो सकता हैं ! यह षड्यंत्र कभी अंग्रेज करते थे !यह षड्यंत्र कभी अंग्रेज करते थे ! वे देश की भावनात्मक एकता को तोड़नें के सदेव प्रयत्नशील किया करते थे, चूँकि वे भारत में भारत का मन बढ़ानें नहीं बल्कि सत्ता को हासिल करने का शोषण करना चाहते थे ! उन्होंने ऐसा किया भी ! उन्हें लगाव नहीं था इस देश से, और इसकी विरासत से ! एक अंग्रेज ही क्यों मुगलों,पठानों,तुर्को या बहुत पहिले शकों ने धरती के जिस भूभाग को जीता,उसका शोषण किया,उसे बरबाद किया ! यह स्वभाविक हैं, मनोवैज्ञानिक हैं ! प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मातृभूमि से लगांव होता हैं जो उन्हें नहीं था, उन्होंने पीढ़ियां गुजर जाने के बाद भी इस धरती को अपना नहीं माना ! यदि अपनत्व नहीं तो प्रगति की नीतियां कैसे बनेगीं ! स्थानीय लोगों की तकलीफ कैसे समझ में आयेगीं ! वे लोग न समझ होते हैं,अदूरदर्शी होते हैं या यह खून की कोरे भावुक होते हैं जो विदेशी मूल के व्यक्तित्व के झासों में आकर राष्टहित उनके कदमों में डाल देते हैं ! हमने बहुत प्रयोग कर लिए,बहुत नुकसान उठा लिए, लेकिन अब नहीं ! कोई विदेशीपन नहीं, कोई लुभावनी बात नहीं और एक भी ऐसी बात से भर्मित नहीं होवें जो हमें, इस देश की समस्याओं और उनके समाधान से दूर करती हों !

आज देश में एक ज्वार उठा हैं, एक झंकार उठी हैं ! हमें जाति, धर्म, साम्प्रदाय, भाषा, क्षेत्र से ऊपर राष्ट्र्वाद को रखना हैं ! राजनीती से ऊपर राष्ट्नीति होनी चाहियें !

लोकसभा के यह चुनाव देश की दशा तय करने वाले हैं ! कई मामलों में इनका परिणाम मील का पत्थर सावित होगा ! में समाज से आग्रह करना चाहता हूँ कि मतदान करें, सोच-समझकर करें, पूरी ताकत से करें और राष्ट् के भावी हितों को ध्यान में रखकर देश में राष्टबादी सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं, यही समाज की परम्परा हैं और यही आज की परिस्थियों के लिए उचित भी !




अखिल भारतीय कायस्थ महासभा,

इकाई मध्य भारत, भोजपाल नगरी, भोपाल

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