श्रीमती साधना श्रीवास्तव
१२/२ संजय काम्प्लेक्स
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कविता
कविता
काँटों से भरा है जीवन का सफर
पर चलना पड़ता है उसी राह पर |
काँटों को समझलें फूल हम अगर ,
सुहानी लगने लगती है वही डगर |
काँटों से भरा है जीवन का सफर,
मिलजाता है जब कोई हमसफ़र |
ख़ुशियाँ आ जाती है उसके घरपर ,
जिंदगी हैं देखो एक सुहाना सफर
|काँटों से भरा है जीवन का सफर
फूल भी खिलें है उसी राह पर |
फिर क्यों हो किसी बात का डर,
जब साथ में हो उसका हमसफ़र |
काँटों से भरा है जीवन का सफर ,
ढूंढ लो अपना एक हमसफ़र |
चाहे वह हो नारी या वह हो नर
चाहत होती बस जाए सबका घर |
काँटों से भरा है जीवन का सफर ,
थाम लो सभी एक दूजे का कर |
न छोड़ना तुम कर,कभी भूल कर,
ख़ुशियाँ सदा रहेंगी तुम्हारे दर पर |
काँटों से भरा है जीवन का सफर ,
पर फूल चुन कर लाता है हमसफ़र |
आसान हो जाती है जीवन की हर डगर
मन में उठती उमंग जिगर में लहर |
काँटों से भरा है जीवन का सफर ,
सेहरा बाँध लो तुम अपने सर पर
ढूंढ लो आज तुम अपना हमसफ़र ,
उम्र का नहीं पड़ता कोई भी असर |
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