गणेश-गण (भूतगण, जीब-गण) के स्वामी अर्थात समस्त प्राणियों तथा पदार्थो के परमाधिपति !
उमा - उ शिवं माति-मिमित्ते* जो भगवान शंकर में अभिन्न रूप से (अर्धनारीश्वर रूप में भी) स्थित होकर उन्हें माप रही हैं; जो शिव में व्याप्त हैं; वे पराशक्ति उमा हैं !
दुर्गा- दुःखेन गम्यते -जिनकी प्राप्ति बड़े कष्ट से होती हैं ! * दुर्गति नश्यति इति दुर्गा* जो भक्त की दुर्गति का निवारण करने वाली हैं, वे पराशक्ति *दुर्गा* कहि जाती हैं !
गणेश-गण (भूतगण, जीब-गण) के स्वामी अर्थात समस्त प्राणियों तथा पदार्थो के परमाधिपति !
महादेव - सबसे श्रेष्ठ देवता ! जो समस्त भावों को छोड़कर अपने ही ज्ञान एवं ऐश्वर्य से महिमान्वित हैं ! * देव प्रकाशक* अतः *महादेव*-परं प्रकाशक !
उमा - उ शिवं माति-मिमित्ते* जो भगवान शंकर में अभिन्न रूप से (अर्धनारीश्वर रूप में भी) स्थित होकर उन्हें माप रही हैं; जो शिव में व्याप्त हैं; वे पराशक्ति उमा हैं !
दुर्गा- दुःखेन गम्यते -जिनकी प्राप्ति बड़े कष्ट से होती हैं ! * दुर्गति नश्यति इति दुर्गा* जो भक्त की दुर्गति का निवारण करने वाली हैं, वे पराशक्ति *दुर्गा* कहि जाती हैं !
गणेश-गण (भूतगण, जीब-गण) के स्वामी अर्थात समस्त प्राणियों तथा पदार्थो के परमाधिपति !
महादेव - सबसे श्रेष्ठ देवता ! जो समस्त भावों को छोड़कर अपने ही ज्ञान एवं ऐश्वर्य से महिमान्वित हैं ! * देव प्रकाशक* अतः *महादेव*-परं प्रकाशक !
रूद्र -रुलाने वाले ! जो प्रलय-काल में प्रजा का संहार करके सबको रुलाते हैं, वे *रूद्र* ! अथवा *रुद ददाति* वाक् शक्ति के प्रदाता शिवपुराण के अनुसार *रूद्र* का अर्थ हैं -दुःखो तथा दुःखो के कारण दूर कर देने वाले ! रुद्रदुःखम दुःख-हेतुं वा तद द्रावयति यः प्रभु ! रूद्र इस्युच्यते तस्माच्छिवः परमकारणम् !!
शिव - निस्त्रैगुण्य - त्रिगुण-रहित शुद्ध सच्चिदानंद तत्व *शिव* कहलाता हैं ! अशुभ-निबारक, कल्याणस्वरूप होने से भी वे *शिव* कहे जाते हैं !
शंकर -*श* का अर्थ हैं- कल्याण ! जीव के परम कल्याणकर्ता होने से भगवान शिव को *शंकर* खा जाता हैं !
शम्भु-*शं* का अर्थ हैं मंगल ! वह जिसके द्वारा प्राप्त होता हैं, वे प्रभु *शम्भु* कहें जाते हैं !
He prayeth well who loveth well, Both man and bird and beast.He prayeth best who loveth best, All things both great and small;For the dear God who loveth us, He made and loveth all.O Lord of courage grave,O Master of this night of spring ! Make firm in me a heart too brave, To ask Thee anything.Who rises from prayer a better man, his prayer is answered.
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