॥ ॐ यमाय धर्मराजाय श्री चित्रगुप्ताय वै नमः ॥
(हे धर्मराज चित्रगु#चित्रं वचो मायागत्यं, चित्रगुप्त स्मृतो गुरूवेरू। सगत्वा कोट नगर, चण्डी भजन तत्पररू।। (पद्य पुराण पाताल खण्ड)प्त , आप मेरे चित्त में व्याप्त हैं इसलिए आपका नाम चित्रगुप्त होगा । आपका वास नगर कोट में रहेगा और आप चण्डी के उपासक होंगे। - पद्य पुराण पाताल खण्ड)
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि धर्मराज चित्रगुप्त का राज्य सिंहासन यमपुरी में है और वो अपने न्यायालय में मनुष्यों के कर्मों के अनुसार उनका न्याय करते हैं तथा उनके कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं |
#चित्रगुप्तम, प्रणम्यादावात्मानं सर्वदेहीनाम। कायस्थ जन्म यथाथ्र्यान्वेष्णे नोच्यते मया।।
(सब देहधारियों में आत्मा के रूप में विधमान चित्रगुप्त को प्रमाण। कायस्थ का जन्म यर्थाथ के अन्वेषण (सत्य कि खोज ) हेतु ही हुआ है।
#यजुर्वेद आपस्तम्ब शाखा चतुर्थ खंड यम विचार प्रकरण से ज्ञात होता है कि महाराज चित्रगुप्त के वंसज चित्ररथ ( चैत्ररथ ) जो चित्रकुट के महाराजाधिराज थे और गौतम ऋषि के शिष्य थे ।
बहौश्य क्षत्रिय जाता कायस्थ अगतितवे।
चित्रगुप्त: सिथति: स्वर्गे चित्रोहिभूमण्डले।।
चैत्ररथ: सुतस्तस्य यशस्वी कुल दीपक:।
ऋषि वंशे समुदगतो गौतमो नाम सतम:।।
तस्य शिष्यो महाप्रशिचत्रकूटा चलाधिप:।।
“प्राचीन काल में क्षत्रियों में कायस्थ इस जगत में हुये उनके पूर्वज चित्रगुप्त स्वर्ग में निवास करते हैं तथा उनके
पुत्र चित्र इस भूमण्डल में सिथत है उसका पुत्र (वंसज ) चैत्रस्थ अत्यन्त यशस्वी और कुलदीपक है जो ऋषि-वंश
के महान ऋषि गौतम का शिष्य है वह अत्यन्त महाज्ञानी परम प्रतापी चित्रकूट का राजा है।”
#येनेदम स्वैच्छया, सर्वम, माययाम्मोहितम जगत।
स जयत्यजित: श्रीमान कायस्थ: परमेश्वर:।।
विष्णु धर्म सूत्र (विष्णु स्मृति ग्रंथ के प्रथम परिहास के प्रथम श्लोक में तो कायस्थ को परमेश्वर का रुप कहा गया है।
#यमांश्चैके-यमायधर्मराजाय मृतयवे चान्तकाय च।
वैवस्वताय, कालाय, सर्वभूत क्षयाय च।।
औदुम्बराय, दघ्नाय नीलाय परमेषिठने।
वृकोदराय, चित्रायत्र चित्रगुप्ताय त नम:।।
एकैकस्य-त्रीसित्रजन दधज्जला´जलीन।
यावज्जन्मकृतम पापम, तत्क्षणा देव नश्यति।।
यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतों का क्षय करने वाले, औदुम्बर, चित्र, चित्रगुप्त, एकमेव, आजन्म
किये पापों को तत्क्षण नष्ट कर सकने में सक्षम, नील वर्ण आदि विशेषण चित्रगुप्त के परमप्रतापी स्वरूप का बखान करते
हैं। पुणयात्मों के लिए वे कल्याणकारी और पापियों के लिए कालस्वरूप है।
#कमलाकरभट्ट क्रित वृहत्ब्रहम्खण्ड् में लिखा है-
भवान क्षत्रिय वर्णश्च समस्थान समुद्भवात्। कायस्थ्: क्षत्रिय: ख्यातो भवान भुवि विराजते॥
#विद्या वाश्च्य शुचि; धीरो , दाता परोप्कराकः ! राज्य सेवी , क्षमाशील; कायस्थ सप्त लक्षणा ; !!
स्कंद पुराण में कायस्थ के सात लक्षणों को बताया गया है ।

आलेख पढ़ा, यह जानकर अत्यंत हर्ष और संतोष हुआ, कि जिन प्रश्नों को मैं वर्षों से उठाता रहा अंततः उस पर महापरिषद द्वारा स्वीकृत प्रदान कर दी गई है।
ReplyDeleteजो तथाकथित विद्वान गैर तार्किक तरीके से तथ्यों को विकृत करके अपने वर्ण की श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए हजारों वर्षों से पूज्य ग्रंथों को मिलावट के जरिए दूषित करते आए हैं, उससे उनके पुरखे भी लज्जित महसूस कर रहे होंगे।
सहज तर्क है कि किसी भी राज्य या देश में वरीयता क्रम में कौन श्रेष्ठ है ? उस राज्य या देश का मुख्य न्यायाधीश अथवा पुलिस महानिदेशक ?
निश्चित रूप से मुख्य न्यायाधीश। फिर अखिल ब्रह्मांड के रचयिता भगवान विष्णु ने धर्मराज चित्रगुप्त जी को प्रत्येक जीवात्मा द्वारा अपने जीवनकाल में मन, वचन और कर्म द्वारा किए गए संपूर्ण कार्यों का सूक्ष्मतम अनुशीलन और विश्लेषण कर धर्मानुकूल दंड और पुरस्कार देने का अधिकारी होने का दायित्व सौंपा। उनके आदेश अनुसार दंड देने का दायित्व यमलोक के अधिष्ठाता यमराज जी को सौंपा। लिहाज़ा एक मनुष्य का देवलोक को जाएगा, और पुण्य भोगने के बाद फिर अगला जन्म क्या लेगा, इसका भी निर्धारण धर्मराज यानी श्री चित्रगुप्त महाराज ही करेंगें।
अर्थात, देव भी अगले जन्म के लिए उनके फैसले से बंधे हैं, अर्थात देवों से भी श्रेष्ठ हैं।
आपका आत्मीय आभार,
सादर,
संदीप कुमार श्रीवास्तव
जिला सिंगरौली मप्र
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