1.धर्मध्वज ( श्रीवास्तव )
2. रामदयाल (सक्सैना)
3. योगाधर(माथुर)
4. भानुप्रकाश (भटनाकर) हुये।
शोभावती (इरावती) से आठ पुत्र क्रमश
1. श्याम सुन्दर (सुरज ध्वज)
2. सुमति (निगम)
3. सदानन्द (कुलश्रेष्ठ)
4. दामोदर (कर्ण)
5. धर्मदत्त (गौण)
6. दीनदयाल (अष्ठाना)
7. शार्ड् गधर ( अम्बष्ट) एवं
8. राधौराम ( बाल्मीकि) हुये।
चित्रगुप्त के सभी पुत्रों का उपनयन ( यज्ञोपवीत) संस्कार कश्यप जी के द्वारा कराया गया तथा सभी पुत्रों का विधाश्ययन 5 वर्ष की आयु में शुरू हुआ। श्री ब़हस्पति जी की छत्रछाया में सभी यथासमय सभी पुत्रों को बुलाकर उपदेश दिया कि हे पुत्रों तुम अपनी लेखन गणक व़त्ति रखना शास्त्र को अपनी जीविका ही नहीं अपितु युद्वादि समय में शास्त्र धारण कर युद्व भी करना , अपने शस्त्र तो कभी न छोडना । विधा के अभाव को अपने जीवन में कभी अंदर न आने देना, देवताओं का पूजन , ब्रहामणों का पोष्ज्ञझा तथा उनका आदर करना ताकि तीनों लोकों का कल्याण हो। इस प्रकार उपदेश देकर सभी को विभिन्न क्षेत्रों में म़त्युलोक भेजा जहां बारह भाई विभिन्न क्षेत्रों में जाकर बस गये।
श्री चित्रगुप्त जी ग़हस्त धर्म त्याग कर परमेश्वर की आज्ञा पाकर धर्मराज की सेवा में यमपुरी पहुंचें जहां धर्मराज ने सिहांसन से उठाकर प्रेम से चित्रगुप्त जी को हदय से लगा लिया तथा रन्नजडित मुकुट पहनाकर सिंहासन पर बैठाया। तदोपरान्त श्री चित्रगुप्त जी अपने कार्य में तल्लीन हो गयें।
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